दीवाली के मौसम पर उद्योग में लगा हुआ प्रत्येक व्यक्ति अपना आय-व्यय देखता है, पुराना खाता ठीक करता है, जाँच-पड़ताल करके बंद कर देता है तथा आगे के लिए नया खाता खोलता है। इससे उसे अपनी सच्ची स्थिति का ज्ञान हो जाता है कि उसको कितना लेना-देना है। अपनी इस स्थिति और पूँजी का अंदाजा लगाकर ही अगले वर्ष का कारोबार और उसका विस्तार निश्चित किया जाता है। इसीके आधार पर नई योजनाएँ बनाई जाती हैं।
राजनीति क्षेत्रों में हमने उद्योग आरंभ किया। उसके आय-व्यय का निरीक्षण करना भी बीच-बीच में आवश्यक है। हमारे नीतिज्ञ भी कह गए हैं कि
कश्चाहं का च में शक्तिरिति चिन्तेयत् मुहुर्मुहु:॥
अर्थात् हमको बार-बार इस बात का विचार करना चाहिए कि कौन सा देश और काल है? कौन मित्र है? हमारा आय-व्यय क्या है? हम कौन हैं तथा हमारी शक्ति क्या है? इन बातों का निरंतर विचार करनेवाला ही सदा विजयी एवं सफल होता है। आइए हम भी इन बातों पर विचार करें अथवा वाणिज्य-शब्दावली यों कहें कि अपने आय-व्यय का निरीक्षण करें।
भारतवर्ष का कारोबार बहुत पुराना है। दुनिया में सब लोग अच्छी तरह व्यापार करना न जानते थे तब से इसका उद्योग चल रहा है। अपनी उत्पत्ति तथा उनकी विशेषताओं के लिए वह बहुत दिनों से प्रसिद्ध रहा है, इसलिए इसकी साख बहुत ही मूल्यवान् रही। बहुत दिनों तक तो ज्ञान, विज्ञान, कला, कौशल आदि की उत्पत्ति पर एकाधिकार रहा और इस कारण वह दुनिया में सबसे अधिक धनवान ही नहीं, प्रतिभावान भी समझा जाता था। व्यापार में ‘एक बात’ इसका गुण था जिसे इसने सत्य का ट्रेडमार्क दे रखा था, सहिष्णुता इसकी दूसरी विशेषता थी। इधर कुछ सदियों से कारीगरों और प्रबंधकों में मन-मुटाव तथा भेद-भाव होने के कारण इसकी साख गिर गई और वह विदेशियों के हाथ में भी चली गई जिसने इसकी मशीनों को नष्ट करने और उनमें आमूल परिवर्तन करने का प्रयत्न किया। फलत: उत्पत्ति भी गिर गई तथा इनके स्टेंडर्ड में भी फर्क आ गया।
कुछ वर्षों से इसका प्रबंध अपने हाथ में लेने की कोशिश हो रही थी। और वह प्रयत्न 15 अगस्त, 1947 को सफल हुआ। तब से तथा उससे कुछ वर्ष पहले से भी कुछ कम रूप में इसका प्रबंध इंडियन नेशन कांग्रेस लि. की स्थापना सन् 1885 में हुई थी। पहले तो यह एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी थी किंतु बाद में यह पब्लिक हो गई। इसके संचालक बीच-बीच में बदलते रहे हैं। अपने हाथ में प्रबंध लेने के पूर्व इसके डाइरेक्टरों का कहना था कि हिंदुस्थान के शासन में बहुत सी बुराइयाँ हैं। यहाँ अत्याचार और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। कामगारों की बुरी हालत है, उन्हें भर पेट रोटी नहीं मिलती और न बदल ढकने को कपड़ा। अगर उनके हाथ में प्रबंध आ गया तो वे सबको सुख, शांति, सम्मान और वैभव देंगे तथा दीनता और भुखमरी दूर हो जाएगी। अब प्रबंध उनके हाथ में है। यह आनंद की बात है। परंतु आज तक का आय-व्यय शेष सबके सामने है।
आय-व्यय पत्रक
(अधिक श्रावण कृष्ण 14, वि.सं. 2004 से कार्तिक शुक्ल 10, वि.सं. 2005 तक)
आय
1. भारत से अंग्रेजों की विदाई तथा भारतवर्ष को औपनिवेशिक स्वराज्य की प्राप्ति।
2. प्रांतों एवं केंद्र में कांग्रेस सरकार की स्थापना। कांग्रेस के ही मंत्री, गवर्नर आदि की नियुक्ति तथा बड़ी-बड़ी तनख्वाहें।
3. कांग्रेस का बोलबाला।
4. होम गार्डस, प्रांतीय रक्षा दल तथा कांग्रेस सेवादल का निर्माण।
5. देशी रियासतों का भारतीय संघ में समाहार।
6. हैदराबाद समस्या का हल।
7. विदेश-विभाग से संबंधित अनेक लोगों की विदेशों में राजदूत के नाते नियुक्ति।
8. कांग्रेस के लोगों को पेंशन आदि सुविधाएँ।
9. पौंडपावना।
व्यय
1. भारत का विभाजन, पूर्ण स्वराज्य के आदर्शों का त्याग तथा देश में अंग्रेज विशेषज्ञों एवं कारीगरों का आगमन।
2. पंजाब, सिंध, सीमा प्रांत और बंगाल में लाखों हिंदुओं की हत्या, लूटमार, अग्निकांड आदि की दुर्घटनाएँ।
3. निर्वासितों की समस्या, पाकिस्तान में करोड़ों की संपत्ति जब्त।
4. पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपए का दान।
5. गांधीजी की हत्या।
6. संपूर्ण देश में पकड़-धकड़।
7. महाराष्ट्र आदि प्रांतों में लूट-मार, अग्निकांड की घटनाएँ तथा अन्य प्रांतों में संघ के स्वयंसेवकों के विरुध्द सब प्रकार के प्रदर्शन।
8. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अवैध घोषित करके नि:स्वार्थ देशभक्ति एवं संघटन की भावना पर आघात।
9. प्रांतीय रक्षा दल, होम गार्ड आदि पर अत्यधिक व्यय एवं उसके द्वारा आपसी पार्टीबाजी।
10. कश्मीर समस्या।
11. प्रजामंडलों के तुष्टीकरण का प्रयत्न।
12. कम्युनिस्ट उपद्रव।
13. हैदराबाद में हिंदुओं पर अत्याचार तथा तज्जनित हानि।
14. लाखों रुपयों का अतिरिक्त खर्चा।
15. अफ्रीका में भारतीयों की दुर्दशा।
16. संयुक्त राष्ट्र संघ में अफ्रीका के प्रश्न पर भारत की हार।
17. सुरक्षा समिति के चुनाव को नौ बार लड़कर यूक्रेन के पक्ष में नामजदगी वापिस लेना।
18. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा काश्मीर कमीशन की नियुक्ति और उसका रुख।
19. गोवा की भारत विरोधी नीति।
20. नवीन कर (बिक्री कर आदि) मुद्रास्फीति, कम उपज, हड़तालें।
शेष
महँगी, बाढ़, अन्न की कमी, घूसखोरी, भ्रष्टाचार, प्रांतीयता, सांप्रदायिकता, कांग्रसीयता, जनसुरक्षा कानून, धारा 144, कंट्रोल पक्षपात, असंतोष पार्टीबाजी।
1. यह व्यय सब भागीदारों की राय से होना चाहिए था। किंतु संचालकों ने राय न लेकर अनियमितता की।
2. इसके संबंध में अभी तक कुछ निश्चित नहीं हुआ, डर है कि यह भावना डूब न जाए। संभावना है तथा इसीलिए बैलेंस-शीट पूरी नहीं मिली है। शासन, योग्यता, भारतीयता।
– दीनदयाल उपाध्याय
(पांचजन्य, कार्तिक शुक्ल, वि.सं. 2005)