स्वातंत्रता स्वयं साध्य नहीं केवल साधन है (भारत का समन्वयवाद ही पूँजीवाद और तानाशाही के दोषों का हल है)
संघ जीवन के शाश्वत् तत्त्वों का उपासक मेरठ। अब से प्राय: तीन हजार वर्ष पूर्व भारतवर्ष के जन-जीवन में कर्म, चेतना, क्रांति-भावना तथा महत्त्वाकांक्षाओं का उदय हुआ था और उस समय इस देश के समस्त समाज ने अपने-अपने क्षेत्र में उन महत्त्वाकांक्षाओं का प्रटीकरण कला-कौशल तथा वाणिज्य व्यवसाय की उन्नति, छात्रबल के विकास तथा ब्राह्मणों […]
लौकिक, धर्महीन, धर्मरहित, धर्मनिरपेक्ष, अधार्मिक, अधर्मी, निधर्मी अथवा असांप्रदायिक
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतवर्ष को एक ‘सेक्यूलर स्टेट’ घोषित किया गया है तथा तबसे यह शब्द लोगों की जबान पर इतना चढ़ गया है कि क्या बड़े-बड़े नेता और क्या गाँव-गाँव, गली-गली में बातचीत के स्वर को ऊचा करके ही भाषण की हवस मिटानेवाले छुटभैये, सभी दिन में चार बार ‘सेक्यूलर स्टेट’ की दुहाई देकर […]
मानव की स्थिति और प्रगति
मानव की स्थिति और प्रगति उसकी जयिष्णु और सहिष्णु प्रवृत्ति के सामंजस्य पर ही निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा दूसरों पर प्रभाव डालने की, उन पर विजय पाने की रहती है तथा अपने व्यक्तित्व को प्रभावी एवं विजयी बनाने के लिए वह सतत् प्रयत्नशील रहता है। उसकी दौड़-धूप इसलिए होती रहती है। किंतु इस […]
जीवन का ध्येय
विश्व का प्रत्येक प्राणी सतत् इस बात का प्रयत्न करता रहता है कि उसका अस्तित्व बना रहे, वह जीवित रहे। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वह दूसरे अनेक प्राणियों को अस्तित्वहीन करने का प्रयत्न करता रहता है तथा स्वयं उसको अस्तित्वहीन करनेवाली शक्तियों से निरंतर अपनी रक्षा करता रहता है। विनाश और रक्षा […]
राष्ट्र जीवन की समस्याएँ
भारत में एक ही संस्कृति रह सकती है; एक से अधिक संस्कृतियों का नारा देश के टुकड़े-टुकड़े करके हमारे जीवन का विनाश कर देगा। अत: आज लीग का द्विसंस्कृतिवाद, कांग्रेस का प्रच्छन्न द्विसंस्कृतिवाद तथा साम्यवादियों का बहुसंस्कृतिवाद नहीं चल सकता। आज तक एक-संस्कृतिवाद को संप्रदायवाद कहकर ठुकराया गया किंतु अब कांग्रेस के विद्वान भी अपनी […]
राजनीतिक आय-व्यय
दीवाली के मौसम पर उद्योग में लगा हुआ प्रत्येक व्यक्ति अपना आय-व्यय देखता है, पुराना खाता ठीक करता है, जाँच-पड़ताल करके बंद कर देता है तथा आगे के लिए नया खाता खोलता है। इससे उसे अपनी सच्ची स्थिति का ज्ञान हो जाता है कि उसको कितना लेना-देना है। अपनी इस स्थिति और पूँजी का अंदाजा […]
तृतीय योजना : एक विश्लेषण
तृतीय पंचवर्षीय योजना लोकसभा में सोमवार, 7 अगस्त को, जब उसका वर्षाकालीन सत्र आरंभ हुआ, प्रस्तुत की गई। योजना का विस्तृत रूप उससे भिन्न नहीं हैं, जैसा पहले प्रारूप में प्रकाश डाला गया था। कुछ कार्यक्रमों पर अधिक विस्तार से प्रकाश डाला गया है, पर बेकारी और मूल्यनीति आदि जैसे मामलों के बारे में, जिन्हें […]
चिति-2
किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उसकी चिति के कारण होता है। चिति के ही उदयावपात होता है। भारतीय राष्ट्र के भी उत्थान और पतन का वास्तविक कारण हमारी चिति का प्रकाश अथवा उसका अभाव है। आज भारत उन्नति की आकांक्षा कर रहा है। संसार में बलशाली एवं वैभवशाली राष्ट्र के नाते खड़ा होना चाहता है। […]
समाजवाद, लोकतंत्र अथवा मानवतावाद
यद्यपि भारत में समाजवादी विचार और समाजवादी पार्टियां उस समय से ही विद्यमान हैं जब से यूरोपीय विचारों ने यहाँ के शिक्षित लोगों को प्रभावित करना आरंभ किया, तथापि सैद्धांतिक रूप में समाजवाद यहाँ के निवासियों के राजनैतिक या सामाजिक जीवन में अपना कोई विशेष स्थान नहीं बना सका। परंतु, कांग्रेस के आवड़ी अधिवेशन के […]
केरल और जनसंघ
कम्युनिस्ट सरकार त्यागपत्र दे : राष्ट्रपति शासन लागू हो कालीकट। केरल जनंसघ की प्रदेश कार्यकारिणी ने निम्न प्रस्ताव पारित कर केरल के कम्युनिस्ट शासन के विरुद्ध जन-आंदोलन का स्वागत किया है और उसे अपना समर्थन प्रदान किया है। ‘यह तर्क कि, वैधानिक उपायों से चुनी गई सरकार को आंदोलन के सहारे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि […]