Hindi Articles

स्वातंत्रता स्वयं साध्य नहीं केवल साधन है (भारत का समन्वयवाद ही पूँजीवाद और तानाशाही के दोषों का हल है)

संघ जीवन के शाश्वत् तत्त्वों का उपासक मेरठ। अब से प्राय: तीन हजार वर्ष पूर्व भारतवर्ष के जन-जीवन में कर्म, चेतना, क्रांति-भावना तथा महत्त्वाकांक्षाओं का उदय हुआ था और उस

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लौकिक, धर्महीन, धर्मरहित, धर्मनिरपेक्ष, अधार्मिक, अधर्मी, निधर्मी अथवा असांप्रदायिक

स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतवर्ष को एक ‘सेक्यूलर स्टेट’ घोषित किया गया है तथा तबसे यह शब्द लोगों की जबान पर इतना चढ़ गया है कि क्या बड़े-बड़े नेता और क्या

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मानव की स्थिति और प्रगति

मानव की स्थिति और प्रगति उसकी जयिष्णु और सहिष्णु प्रवृत्ति के सामंजस्य पर ही निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा दूसरों पर प्रभाव डालने की, उन पर विजय पाने की

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जीवन का ध्येय

विश्व का प्रत्येक प्राणी सतत् इस बात का प्रयत्न करता रहता है कि उसका अस्तित्व बना रहे, वह जीवित रहे। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वह दूसरे अनेक

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राष्ट्र जीवन की समस्याएँ

भारत में एक ही संस्कृति रह सकती है; एक से अधिक संस्कृतियों का नारा देश के टुकड़े-टुकड़े करके हमारे जीवन का विनाश कर देगा। अत: आज लीग का द्विसंस्कृतिवाद, कांग्रेस

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राजनीतिक आय-व्यय

दीवाली के मौसम पर उद्योग में लगा हुआ प्रत्येक व्यक्ति अपना आय-व्यय देखता है, पुराना खाता ठीक करता है, जाँच-पड़ताल करके बंद कर देता है तथा आगे के लिए नया

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तृतीय योजना : एक विश्लेषण

तृतीय पंचवर्षीय योजना लोकसभा में सोमवार, 7 अगस्त को, जब उसका वर्षाकालीन सत्र आरंभ हुआ, प्रस्तुत की गई। योजना का विस्तृत रूप उससे भिन्न नहीं हैं, जैसा पहले प्रारूप में

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चिति-2

किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उसकी चिति के कारण होता है। चिति के ही उदयावपात होता है। भारतीय राष्ट्र के भी उत्थान और पतन का वास्तविक कारण हमारी चिति का

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समाजवाद, लोकतंत्र अथवा मानवतावाद

यद्यपि भारत में समाजवादी विचार और समाजवादी पार्टियां उस समय से ही विद्यमान हैं जब से यूरोपीय विचारों ने यहाँ के शिक्षित लोगों को प्रभावित करना आरंभ किया, तथापि सैद्धांतिक

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केरल और जनसंघ

कम्युनिस्ट सरकार त्यागपत्र दे : राष्ट्रपति शासन लागू हो कालीकट। केरल जनंसघ की प्रदेश कार्यकारिणी ने निम्न प्रस्ताव पारित कर केरल के कम्युनिस्ट शासन के विरुद्ध जन-आंदोलन का स्वागत किया

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कांग्रेस के ‘समाजवादी नारे’ से ही कम्युनिस्ट के पैर जमे

मैं दिल्ली जनसंघ के कार्यकर्ताओं को निधि-संग्रह के संबंध में उनके संकल्प की सफल पूर्ति के लिए बधाई देता हूँ। सामान्य नागरिकों से एकत्रित यह निधि दिल्ली की जनता के

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हमारी अर्थ-नीति का मूल आधार

विकासोंमुख भारतीय अर्थनीति की दिशा की ओर संकेत अनेक बार किया जा चुका है। यह निश्चित है कि काफी लंबे अर्से से परागति की ओर जानेवाली व्यवस्था को प्रगति की

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